मेरे प्यारे गुरुओं
By Vasundhara Pande
(05/09/2020 19:30IST)
यूँतो काफी लोगों का मत इसी में हैं की ज़िन्दगी सबसे उम्दा गुरु हैं परन्तु मेरा मत बाकी लोगों से भिन्न हैं क्यों कि कभी –कभी आपकी मुलाकात ऐसे गुरुओं से होती हैं जो आपकी ज़िन्दगी में जान डाल देते हैं!
अभी तक मेरी मुलाकात जितने भी गुरुओं से हुई , उनमें सर्वश्रेष्ठ मेरी माँ हैं | उन्होंने मेरे जीवन में अध्यापिका तथा एक माँ दोनों का किरदार बखूबी निभाया हैं और निभाती रहेंगी | जब भी गणित के किसी सवाल में खुद को उलझा पाती थी, मैं माँ की सहायता लेकर उन्हें हल कर लेती थी | मेरा यह मानना हैं की मेरी माँ से अच्छा गणित मुझे और कोई नहीं पढ़ा सकता |
फिर आते हैं हमारे विद्यालय के हीरो, पेशे से एक मनोव्यैज्ञानिक परन्तु अंदाज़ से सबके दिल में जगह बनाने वाले! उन्होंने मुझे सिखाया की ज़िन्दगी कैसे जीनी चाहिए, या यूँकि मुझे ज़िन्दगी जीने की कला सीखा दी | वह हमेशा कहते थे कि,"ज़िन्दगी एक रोलर कोस्टर की सवारी के समान हैं, उतार चढ़ाव आना स्वाभाविक हैं परन्तु, ज़िन्दगी के सफर का लुफ्त ताउम्र उठाना चाहिए |" जब भी मैं खुद को मायूस पाती हूँ, मेरे मन में उनके यह शब्द विचरने लगते हैं, ऐसा लगता हैं मानो, दुसरे ही पल मेरा पुनर्जन्म हुआ हो | उन्होंने मुझे यह भी सिखाया की कामयाबी को हासिल करना हो तो कठिन परिश्रम करो तथा खुद पर विश्वास रखो, बस फिर सफलता तुम्हारे कदमों में होगी | उनकी तारीफ़ में जितना भी लिखूँ उतने कम हैं !
स्कूल की मीठी यादों का पिटारे जब–जब खोलती हूँ तब–तब मुझे मेरी अंग्रेजी की अध्यापिका की याद आती हैं | वह मेरी अध्यापिका कम और दोस्त ज़्यादा हैं| उन्होंने हमेशा मुझे खूब प्यार दिया और अपने विषय में और अच्छे अंक लाने के लिए प्रोत्साहित किया| सच्चे गुरु की परिभाषा मेरी उन अध्यापिका से ही हैं |
मेरी रुचि मनोविज्ञान में हैं और इसका काफी श्रेय मेरी मनोविज्ञान की अध्यापिका को जाता हैं जिन्होंने मेरी रूचि इस विषय में कायम रखी| जब भी वह कक्षा में पढ़ाती थी तब–तब मैं स्वयं को उनकी बातों में खोया पाती थी| ऐसा लगता मानो मनोविज्ञान खुद अपने हाथ फैलाएं अपनी दुनिया में मेरा स्वागत कर रहा हो|
पांचवी कक्षा में मैंने नए विद्यालय में दाखिला लिया, और आज भी खुद को भाग्यशाली समझती हूँ क्योंकि इसी विद्यालय में मेरा परिचय एक ऐसे व्यक्तित्व से हुआ जिनके कारण मुझे हिंदी से लगाव हो गया| वह मेरी हिंदी की अध्यापिका थीं जिन्होंने मुझे हिंदी की कहानियों की दुनिया से अवगत कराया| मैं आजीवन उनकी कृतज्ञ रहूँगी |
यूँ तो गुरुओं की महिमा चंद शब्दों की मोहताज़ नहीं परन्तु, जितना भी आपने पढ़ा वह सब मेरे गुरुओं के लिए , मेरी ओर से एक छोटी सी भेंट है|
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
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Vasundhara Pande
Editor In Chief, INARA